न तो आकाश वाणी हुई ,न ही भगवान का अवतार,न तो कोई चमत्कार देखने को मिला, न ही कोई देवता आया होकर किसी पर सवार।बस चारों ओर कोरोनावायरस से मचा है हाहाकार। तपस्वियों के आसन नहीं डोले। इंद्र देवता भी आकर कुछ नहीं बोले।। मंदिर बंद हो गए मैं ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करता हूं कि कोई अदृश्य शक्ति है प्रकृति नियंता है जिनकी आराधना त्रिदेव कहे जाने वाले ब्रह्मा, विष्णु,महेश भी करते हैं वही परमेश्वर आप में निवास करता है आपकी गतिविधियों को संचालित करता है वह न तो मंदिर में वास करता न ही मस्जिद में । यह अंधविश्वासी आडंबरीऔर पाखंडी मनुष्य को बताने कोरोनावायरस दुनिया में आया है और मनुष्य को खासकर मंदिरों मस्जिदों में जाकर पूजा करने वालों को चुनौती दे रहा है बुला लो भगवान को बुला लो अल्लाह को देखें कौन बचाता है बचाएंगे तो सिर्फ "अलख"परमेश्वर अदृश्य शक्ति जो आपके हृदय में वास करते हैं। इसलिए हमें मंदिर मस्जिद में न जाकर अपने अंदर की शक्ति को जागृत करना चाहिए मंदिर मस्जिद में जाकर समय और धन को व्यय करने से अच्छा है जहां पर रहते हैं वहीं एकांत चित्त होकर ध्यान केंद्रित कर अपनी सांसों के बारे में सोचें मैंने ऐसे ही एकांत स्थान पर रहने वाले महान तपस्वी के दर्शन कर यह सीखा एकांत में रहकर कैसे प्रकृति नियंता सब कुछ प्रदान करता है वह तपस्वी कभी कहीं नहीं जाते हैं परन्तु सब उनके पास चलकर जाते हैं। मैंने उनसे मन ही मन जो प्रार्थना की उन्होंने सुना और जो ज्ञान दिया उसका सार यही है कि जहां हैं वहीं पर रहते हुए अपने शरीर में वास करने वाले परमेश्वर को जाने संसार में महापुरुषों की कमी नहीं है परन्तु परमेश्वर कभी अवतार नहीं लेता है ये सच है । संसार में सब कुछ वही घटित होता है जो परमेश्वर रचता है मानव भी उसी की रचना है मानवीय क्रियाओं की प्रतिक्रिया के रूप में कोरोनावायरस की महामारी फैली है और इसे मानवीय प्रयासों से ही रोका जाएगा लेकिन इस महामारी से हमें सीखना चाहिए कि मंदिर, मस्जिद, धर्म जाति, को देखकर महामारी नहीं फैली न ही पंडे पुजारी मौलाना इस पर नियंत्रण कर पाएंगे। इसलिए मंदिर मस्जिद गिरजाघर से ऊपर उठकर अपने हृदय में ही मंदिर मस्जिद देवालय बनाईए---------के.पी.सिंह"पत्थर फ़र्रूख़ाबादी"
"न मंदिर जाइए ,न मस्जिद, अपने मन को ही देवालय बनाइए,सुधर जाइए जहां हैं वहीं पर रह कर "अलख"परमेश्वर का ध्यान लगाइए"