कहीं शेल्टर होम जले, कहीं गरीब का दिल, कहीं किसान की फसलें जलतीं,इसी से राजनीति चलती है इसी से खबरें चलतीं हैं, अगर नहीं चलती है तो वह है गरीब मजदूर की जिंदगी। जिससे सरकारें चलतीं हैं,जिन चलती फिरती लाशों पर चर्चा चलती है मीडिया और सरकार उन गरीबों, मजदूरों, किसानों की छाती पर मूंग दलती है। उन्हें हर दम छलती है, मीडिया में सरकार उछलती कूदती फांदती मर्यादा की सारी सीमाएं लांघती है। माननीय श्री राहुल गांधी से चुनाव जीतने के लिए चार पांच किसानों की फसल आग पकड़ लेती है माननीया श्रीमती स्मृति ईरानी जी हैण्डपंप चलातीं हैं। मुआवजा आग लगने से पहले दे दो या बाद में क्या फर्क पड़ता करोड़ों अरबों रुपए में कितना दोगे पांच लाख दस लाख आपके लिए तो पांच दस पैसे के बराबर हैं।आज दिल्ली में कई शेल्टर होम में आग लगा दी मजदूर को इतना पीटा कि मर गया यमुना नदी में फेंक दिया अभी तक शिनाख्त नहीं हो सकी गलती ये भूख से तड़प रहा था खाना बंट रहा था लेने पहुंच गया उसे क्या पता कि"अंधा बांटे रेवड़ी चीन्ह चीन्ह कर देय"माननीय श्री केजरीवाल जी भोजन पानी नहीं दे सकते तो उन्हें दिल्ली से घर जाने दो , भूखे प्यासे राह में दम तोड़ देंगे आप हत्या क्यों करवा रहे हो इतने निर्दयी बन गए पड़ोसी की संगत पाकर रहम कीजिए साहेब मीडिया कितना भी मामला दबाने की कोशिश कर ले अलौकिक अदृश्य शक्ति "अलख"परमेश्वर सब देख रहा है। और असहाय है ये पब्लिक, परन्तु ये पब्लिक है ये सब जानती है"---------"पत्थर फ़र्रूख़ाबादी"
"कहीं जलीं फसलें, कहीं गरीब का घर,भूखा था खाना मांगने पर मार डाला"