हम हिन्दू समाज में एकता कभी नहीं हो सकती,आप जानते हैं हमारी सबसे बड़ी कमजोरी क्या है? मित्रो हमारे यहां जातिवाद ऊंच नीच की भावना चरम सीमा पर है। इस विषबेल की जड़ें बहुत गहरी हैं। इसके लिए जिम्मेदार कौन है? इसके लिए जिम्मेदार हमारा मिथ्या अभिमान और स्वयं को श्रेष्ठ साबित करने की होड़ है, हमारी हिन्दू एकता को खंडित करने में मुख्य भूमिका उन धार्मिक पुस्तकों की भी है जो हमें ज्ञान और नैतिक शिक्षा प्रदान करतीं हैं।एक छोटा सा उदाहरण हमारी पवित्र पुस्तक "रामायण"या "रामचरितमानस से है ।यह सभी जानते हैं कि सीता खोज, लंका दहन, मेघनाद यज्ञ विध्वंस, नागपाश के बंधन से राम लक्ष्मण को मुक्त कराना, वैद्य सुषेण को लाना, संजीवनी लाना, अहिरावण वध करके राम लक्ष्मण की मुक्ति, और न जाने कितने महान कार्यों को करने वाले परमेश्वर श्रीहनुमानजी द्वारा ही सम्पन्न किए गए हैं उन्हें वानर होना तथा उनको सेवादार तथा छोटा बताया गया है। यही नहीं उनका स्थान श्रीराम के चरणों में है केवल सेवादार होना सिद्ध किया है। हमारे माननीय श्री योगी जी ने तो उन्हें वनवासी आदिवासी जाति का बता दिया । यही ऊंच नीच का भाव ही हम हिन्दुओं को एकजुट नहीं होने देगा। हिन्दू धर्म के मठाधीश,संतसंन्यासी, धर्माचार्य और प्रबुद्ध नागरिक सुधीजन चिंतन करें और हिन्दू समाज की एकता बनाए रखने हेतु प्रयास करें। अपनी जाति धर्म और समाज की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है और कहा भी गया है "जिस देश जाति में जन्म लिया, बलिदान उसी पर जावें"--------"पत्थर फ़र्रूख़ाबादी"
""हमें अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा हेतु हर संभव प्रयास करना चाहिए"